
रमेश चन्द्रा। धरती पर सैर-सपाटे के लिए अनगिनत स्थान हैं लेकिन पृथ्वी से परे ब्रह्माण्ड पर्यटन का भी अपना अलग आनन्द और रोमांच है। भारत में कई स्थानों पर ब्रह्माण्ड पर्यटन यानि ब्रह्माण्ड दर्शन की अपार सम्भावनाएं हैं। ब्रह्माण्ड पर्यटन न केवल हमें ग्रह-नक्षत्रों से रू-ब-रू कराता है बल्कि आकाशगंगाओं की चकाचौंध के बीच अन्तरिक्ष की अद्भुत सैर भी कराता है। भारत में एस्ट्रो टूरिज्म के लिए अनुकूल कई पर्वत शिखर हैं। आसमान चूमती ऐसी ज्यादातर पर्वत चोटियां उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख और कश्मीर में हैं। उत्तराखण्ड में एस्ट्रो टूरिज्म की शुरुआत कुछ वर्ष पहले हुई थी जो देखते ही देखते अत्यंत लोकप्रिय हो गया। हर साल देश-विदेश के हजारों पर्यटक धरती पर बैठे-बैठे ग्रह-नक्षत्रों की दुनिया की सैर करने के लिए यहां पहुंचने लगे हैं।
यहां ले सकते हैं एस्ट्रो टूरिज्म का आनन्द
उत्तराखण्ड के मैदानी भागों और रोशनी के चकाचौंध से दूर ऐसे कई पर्वतीय स्थान हैं जहां से स्टार गेजिंग का आनन्द उठाया जा सकता है। इनमें अल्मोड़ा जिले में रानीखेत के पास चौबटिया और नैनीताल जिले में मुक्तेश्वर का खुशीराम टॉप प्रमुख हैं। इन दोनों स्थानों पर ठहरने की बेहतर सुविधा होने के कारण पर्यटक काफी संख्या में पहुंचते हैं। पिथौरागढ़ के चौकोड़ी और अल्मोड़ा के बिन्सर से भी ग्रह-नक्षत्रों को बेहद करीब से निहारा जा सकता है। यहां ठहरने के लिए कुमाऊं मंडल विकास निगम के रिजार्ट हैं। उत्तराखण्ड के कुमाऊ मण्डल में ही मुनस्यारी, धारचूला और चम्पावत में भी एस्ट्रो टूरिज्म का आनन्द लेते हुए ग्रह-नक्षत्रों का दीदार किया जा सकता है। इन स्थानों पर ठहरने के लिए गेस्ट हाउस, होटल, रिजार्ट के साथ ही होम स्टे की भी सुविधा उपलब्ध है। उत्तराखण्ड के गड़वाल मण्डल में स्थित बेनी ताल भी एस्ट्रो टूरिज्म के क्षेत्र में तेजी से पहचान बना रहा है। एस्ट्रो टूरिज्म को प्रोत्साहन देने के लिए मुक्तेश्वर, नौकुचियाल आदि में बड़े इवेन्ट्स आयोजित किये जा चुके हैं। देश-विदेश के कई जाने-माने फोटोग्राफर अन्तरिक्ष के नजारों को अपने कैमरों में कैद करने के लिए इन इवेन्ट्स में शामिल हुए थे।
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विज्ञान की श्रेणी में आता है एस्ट्रो टूरिज्म
एस्ट्रो टूरिज्म विज्ञान पर्यटन की श्रेणी में आता है। अन्तरिक्ष के बारे में बेसिक जानकारी हो तो इसका आनन्द दोहरा हो जाता है। दरअसल अन्तरिक्ष के बारे में बेसिक जानकारी होने पर ही इसकी बारीकियों को समझा जा सकता है। यदि बेसिक ज्ञान न हो तो आपके साथ अन्तरिक्ष के बारे जानकारी रखने वाले किसी व्यक्ति का होना बेहद जरूरी है। तभी आप हमारे सौर मण्डल के मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि जैसे सुन्दर ग्रहों को नग्न आंखों से निहारने के साथ ही ब्रह्माण्ड के गूड़ रहस्यों को समझ पायेंगे।
एस्ट्रो टूरिज्म के आकर्षण
एस्ट्रो टूरिज्म के अनेक आकर्षण हैं। इनमें प्रमुख है मेटयोर शॉवर यानि अतिशबाजी के समान होने वाली उल्का वृष्टि। ऐसी उल्का वृष्टि हर साल कई बार होती है और यदि भाग्य की देवी आप पर ज्यादा ही मेहरबान हों तो आप महीने में एक से दो बार भी इसको देखने का आनन्द उठा सकते हैं। लेकिन, इसका आनन्द मौसम साफ होने पर ऊंचाई पर स्थित अंधेरे स्थानों से ही बेहतर लिया जा सकता है। मेटयोर शॉवर होने पर एक घंटे के दौरान दर्जनों से हजारों तक जलती उल्काओं की चकाचौंध से रू-ब-रू हो सकते हैं।
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अच्छादन, ट्रान्जिट, ओपोजिशन तथा ग्रहों का एक सीध में आना, एक-दूसरे के करीब आना और धरती के करीब से गुजरना आदि भी एस्ट्रो टूरिज्म के प्रमुख आकर्षण हैं। सूर्य और चन्द्र ग्रहण भी इसी पर्यटन का हिस्सा हैं। इसके अलावा धूमकेतुओं का धरती के पास से गुजरना भी अद्भुत अनुभव है। धूमकेतुओं को उनकी लम्बी पूंछ जैसी संरचना की वजह से पुच्छल तारे की संज्ञा दी गयी है और अपनी आंखों से इन्हें देखना अनूठी अनुभूति कराता है।

दूरबीन है बड़ी मददगार
अन्तरिक्ष विज्ञानियों के साथ ही आसमानी गतिविधियों में रुचिरखने वालों को अन्तरिक्ष में होने वाली इन अद्भुत घटनाओं का बेसब्री से इन्तजार रहता है। एस्ट्रो टूरिज्म पर निकलने से पहले अपने पास दूरबीन रखना न भूलें क्योंकि इसकी मदद से ग्रहों-नक्षत्रों को बखूबी देखा और समझा जा सकता है। यदि बड़ी दूरबीन हो तो सोने में सुहागा जिसकी मदद से सुदूर अंतरिक्ष में होने वाली घटनाओं को भी देख सकते हैं।
नैनीताल में है एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन
देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखण्ड की अन्तरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में क्या महत्ता है, इसका अन्दाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन नैनीताल जिले के देवस्थल (धानाचूली) में स्थापित की गई है। इस दूरबीन का एक हिस्सेदार बेल्जियम भी है। 3.6 मीटर व्यास की इस ऑप्टिकल दूरबीन को मनोरा पीक स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) संचालित करता है। इसके अलावा एरीज ने चार मीटर की एक अत्याधुनिक लिक्विड मिरर दूरबीन हाल ही में देवस्थल में स्थापित की है। यह दुनिया की पहली ऐसी एक्टिव दूरबीन है जिसने सुदूर अन्तरिक्ष की आकाशगंगाओं और तारों समेत आसमान में होने वाली घटनाओं को तरल कैमरे में कैद करना शुरू कर दिया है। यह दूरबीन पांच देशों का साझा मिशन है। एरीज ने एक मीटर व्यास की दो अन्य दूरबीनें भी क्रमशः मनोरा पीक और देवस्थल में स्थापित की हैं। इन दूरबीनों की मदद से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई बड़े शोध कार्य चल रहे हैं। भारत समेत की देशों के वैज्ञानिक इस कार्य में जुटे हुए हैं।
ताकुला में बन रहा है एस्ट्रो विलेज
नैनीताल के जिलाधिकारी धीरज गर्ब्याल का कहना है कि पर्वतीय क्षेत्रों में एस्ट्रो टूरिज्म की अपार संभावनाएं हैं। लोगों को इसकी जानकारी नहीं होने के कारण पर्यटन के इस क्षेत्र में अब भी काफी कम सैलानी आते हैं। इसके विकास और विस्तार के लिए उत्तराखण्ड सरकार ने इसे पर्यटन में शामिल कर लिया है। नैनीताल के नजदीक ताकुला में एस्ट्रो विलेज बनाया जा रहा है।
एस्ट्रो विलेज की नींव जिस स्थान पर रखी गयी है, उसके प्रति महात्मा गांधी को अत्यंत लगाव था। नैनीताल से मात्र पांच किलोमीटर दूर स्थित ताकुला में गांधी आश्रम के समीप एस्ट्रो विलेज निर्माणाधीन है। यहां एक ऑप्टिकल दूरबीन स्थापित की जा रही है। इस विलेज में आठ कॉटेज होंगे जहां से आसमान की घटनाओं को निहारा जा सकेगा। एस्ट्रो टूरिज्म के माध्यम से पर्यटन को प्रोत्साहन मिलने और रोजगार के अवसर बढ़ने को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन ढाई करोड़ रुपये की लागत से देश का अपनी तरह का यह पहला मॉडल गांव तैयार कर रहा है।
कुमाऊं मण्डल विकास निगम के महाप्रबन्धक एपी बाजपेई का कहना है कि निगम के कई रिजार्ट कुमाऊं के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित हैं जहां से एस्ट्रो टूरिज्म का आनन्द लिया जाता है। ऐसे पर्यटकों के लिए निगम एस्ट्रो टूरिज्म सम्बन्धी सुविधाएं जुटाने का प्रयास कर रहा है।